गेंदे की व्यवसायिक खेती की पूरी जानकारी, कई प्रकार से कर सकते हैं लाभ Gardening Tips For New Starter


Many people like gardening at home, and it’s easy to understand why. Growing your own flowers, herbs, and veggies may be a fulfilling activity that makes you feel accomplished and satisfied. There are many tips and methods to help you get the most out of your gardening efforts, whether you are an experienced gardener or are just getting started. We’ll provide you some helpful home gardening advice in this post to get you started on your gardening adventure. These suggestions can assist you in quickly growing a wholesome and fruitful garden, from picking the ideal area to harvesting your plants at the ideal moment.






















देश में आज से 20-30 वर्ष पूर्व तक फलों की काश्त बहुत ही सीमित क्षेत्र में किसी खास उद्देश्य से ही की जाती थी, परन्तु पिछले कुछ वर्षों से इनकी काश्त व्यावयायिक उद्देश्य के लिए की जाने लगी है. वर्तमान समय में फूलों की मांग बाजार में वर्षभर बनी रहती है. इनका उपयोग सभी तरह के तीज-त्यौहारों, घरों की सजावट, देवी एवं देवताओं को अर्पित करने, शादी-विवाह में मण्डप तथा स्टेज की सजावट, पुष्पगुच्द बनाकर अतिथि के स्वागत करने के अलावा मूल्य सवंर्धित उत्पादों को बनाने के लिये भी किया जाता है. साथ ही आजकल तो काफी प्रजातियों के फूल भी एक देश से दूसरे देशों में निर्यात किये जाने लगे हैं. इन सभी वजहों से फूलों की मांग लगातार बढ़ती जा रही है जिसके कारण इनकी खेती अन्य फसलों की तुलना में किसानों के लिये ज्यादा फायदेमन्द साबित हो रही है.

फूल वाली फसलों में गेंदे का एक महत्वपूर्ण स्थान है. यह एस्टेरेसी कुल संबंध रखता है एवं टैजेटिस वंश (जीनस) के अंतर्गत आता है. इसकी मुख्यतः दो प्रजातियां अफ्रीकन गेंदा (टैजेटिस इरेक्टा) एवं फ्रेंच गेंदा (टेजेटिस पेटुला) काफी प्रचलित हैं. एक अन्य स्पीजीस टैजेटिस माइन्यूटा को भी कुछ स्थानों पर तेल निष्कर्षण के लिए उगाया जाता है. गेंदे का उत्पत्ति स्थल मध्य एवं दक्षिणी अमेरिका, खासतौर पर मैक्सिको को माना जाता है. 16वीं शताब्दी की शुरूआत में ही गेंदा, मैक्सिको से विश्व के अन्य भागों में प्रसारित हुआ. अफ्रीकन गेंदे का स्पेन में सर्वप्रथम प्रवेश सोलहवीं शताब्दी में हुआ और यह रोज ऑफ दी इंडीज नाम से समस्त दक्षिणी यूरोप में प्रसिद्ध हुआ. भारत में इसका प्रवेश पुर्तगालियों ने करवाया था.

अच्छे उत्पादन के लिये भूमि :-

गेंदे का पौधा सहिष्णु प्रकृति का होता है. इसकी खेती लगभग सभी प्रकार की मृदाओं में आसानी से कर सकते हैं. अच्छे उत्पादन के लिए उचित जल निकास वाली, बलुई- दोमट मृदा जिसका पी-एच मान 6.5 से 7.5 के मध्य हो, साथ ही उसमें जीवांश पदार्थो की प्रचुर मात्रा हो, उत्तम मानी गयी है.

पनपने के लिये कैसी हो जलवायु

इसकी बेहतर बढ़वार व अधिक पुष्पोत्पादन के लिए खुले स्थान, जहां पर सूर्य की रोशनी सुबह से शाम तक रहती हो, उपयुक्त हो सकते हैं. ऐसे स्थानों पर गेंदे की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है. छायादार स्थानों पर इसका पुष्प उत्पादन बहुत कम हो जाता है एवं गुणवत्ता भी घट जाती है. इसके लिए विशेषतौर से शीतोष्ण और सम-शीतोष्ण जलवायु उपयुक्त होती है. गेंदे की खेती के लिए 15-29 सेल्सियस तापमान फूलों की संख्या एवं गुणवत्ता के लिए उपयुक्त है जबकि उच्च एवं कम तापमान पुष्पोत्पादन पर विपरीत प्रभाव डालता है.

गेंदे की विशेषताएं

जीनस टैजेटिस की लगभग 33 प्रजातियां हैं जिनमें से दो व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण प्रजातियां हैं-टैजेटिस इरेक्टा एल. इसे आमतौर पर अफ्रीकी गेंदा कहा जाता है. टेजेटिस पेटुला एल. फ्रेंच गेंदा के रूप में लोकप्रिय है. एक अन्य स्पीसीज टैजेटिस माइन्यूटा, जिसे जंगली गेंदा के नाम से भी जाना जाता है, जिसको पिछले कुछ वर्षों से तेल निष्कर्षण हेतु पहाड़ी क्षेत्रों में उगाया जा रहा है.























अफ्रीका गेंदा (टैजेटिस इरेक्टा) : यह एक वार्षिक पौधा है. इसकी ऊंचाई एक या एक से अधिक मीटर तक हो जाती है और पौधा सीधा एवं शाखाओं वाला होता है. फूल बड़े आकार (7-10सें.मी.) वाले, पीले एवं नारंगी रंगों की विभिन्न छाया में अर्थात् हल्का पीला, सनुहरा पीला, चमकदार पीला, सुनहरा नारंगी, कैडमियम नारंगी, उज्ज्वल नारंगी, या गहरे नारंगी रेगों में होते हैं. इस प्रजाति में द्विगुणित गुणसूत्रों की संख्या 24 होती है. इसकी प्रमुख किस्में इस प्रकार हैं-पूरा नारंगी गेंदा, पूसा बसंती गेंदा, पूसा बहार, अफ्रीकन जाइंट येलो, अफ्रीकन जाइंट ऑरेंज, क्रेकर जेक, क्लाइमेक्स,गोल्डन ऐज इत्यादि.

फ्रेंच गेंदा (टेजेटिस पेटुला) : यह तुलनात्मक रूप से बौना, 20 से 60 से.मी. ऊंचाई वाला वार्षिक पौधा है, जिस पर छोटे आकार (3-5 सें.मी.) के लेमन पीले, सुनहरे पीले, या नारंगी रंग के लाल फूल होते हैं. इस प्रजाति में द्विगुणित गुणसुत्रों की संख्या 48 होती है. इसकी प्रमुख किस्में हैं – पूसा अर्पिता, पूसा दीप, हिसार ब्यूटी, हिसार जाफरी – 2, रस्टी रेड, रेड बोकार्डो, फ्लैश, बटर स्कॉच, वालेंसिया, सुकाना इत्यादि.

जंगली गेंदा (टेजेटिस माइन्यूटा) : यह प्रजाति हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में भी उगायी जा रही है. इसका पौधा सीधा 1 से 2 मीटर लम्बा तथा शाखाओं से युक्त होता है. खेती की जाने वाली सभी प्रजातियों में टैजैटिस माइन्यूटा उच्च गुणवत्तायुक्त एवं अधिक तेलयुक्त होता है.

पौध प्रवर्धन के लिये आसान तरीका गेंदे का प्रसारण बीज एवं कलम (कटिंग) विधियों द्वारा असानी से किया जा सकता है. बीज द्वारा तैयार किये गये पौधे ज्यादा अच्छे एवं उपज देने वाले होते है. अतः व्यावसायिक खेती के लिये सामान्यतः बीज द्वारा ही नये पौधे तैयार किये जाते हैं.

पौध तैयार के लिये सर्वोत्तम समय गेंदा की पौध तैयार करने का सहा समय स्थानीय जलवायु एवं उगायी जाने वाली किस्म पर निर्भर करता है. उत्तरी भारत में गेंदा की रोपाई वर्ष के तीनों मौसमों (सर्दी गर्मी एवं वर्षा ) में की जा सकती है. ध्यान रखें किस्म का चुनाव मौसम के अनुरूप ही किया गया हो. उत्तरी भारत के मैदानी भागों में गेंदा अधिकत्तर सर्दियां में ही उगाया जाता है एवं इसी मौसम में अधिकत्तर किस्मों का प्रदर्शन बेहतर रहता है, परन्तु इसकी मांग के अनुसार इसे आसानी से अन्य मौसमों में भी उगाया जा सकता है.

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कैसे करें खेत की तैयारी पौध रोपाई के कार्य से पूर्व ही खेत की तैयारी पर भी ध्यान देना प्रांरभ कर दे, क्योंकि जब खेत भलीभांति तैयार होगा तभी कुछ उपज दे पायेगा. अतः एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करके दो-तीन जुताई देशी हल से कर दें एवं मिटटी को अच्छी तरह से भुरभरा बना लें. इसके साथ ही खेत की तैयारी करते समय संतुंलित मात्रा में खाद एवं उर्वरक भी डालें.

गेंदे की प्रमुख किस्मों की विशेषताएं

किस्मों का चयन करते समय हमेशा बहुत सावधानी रखनी चाहिए, क्योंकि किस्मों का प्रदर्शन, क्षेत्र की जलवायु, मौसम विशेष, मृदा की दशाएं इत्यादि बातों पर निर्भर करता है. देश में उगायी जाने वाली गेंदे की प्रमुख किस्मों की विशेषतायें निम्न प्रकार से है :

पूसा नारंगी गेंदा : यह किस्म भारतीय किस्म अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा वर्ष 1955 में सम्पूर्ण भारत में उगाने के लिये विमोचित की गयी थी. इसमें बुआई के 125-136 दिनों बाद पुष्पन प्रारंभ हो जाता है. फुल बड़ें आकार के तथा गहरे नांरगी रंग के होते हैं. इसमें कैरोटिनॉइडस (329 मि.ग्राम/1000 ग्राम पंखुड़ियों में ) की भी अधिकत्ता पायी गयी है, जो कि पोल्ट्री उद्योगों में व्यापक रूप से इस्तेमाल होता है. ताजे फूलों की पैदावार 25 से 30 टन प्रति हैक्टर तक आंकी गयी है. यदि फसल, बीज उत्पादन के लिये उगायी जाती है तो इससे 100-125 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर तक बीज भी प्राप्त किया जा सकता है.

पूसा बसंती गेंदा : यह किस्म बुआई के 135-145 दिनों बाद, मध्यम आकार के पीले रंग के फूल उत्पन्न करती है. बगीचे एवं गमलों में उगने के लिये यह एक आदर्श किस्म है. ताजे फूलों की पैदावार 20 से 25 टन प्रति हैक्टर तथा बीज की उपज 0.7-1.0 टन प्रति हैक्टर तक प्राप्त हो सकती है.

पूसा अर्पिता : यह फ्रेंच गेंदा की किस्म है एवं यह भी भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा वर्ष 2009 में विमोचित की गयी थी. उत्तरी मैदानी भागों में उगाने के लिये यह एक अच्छी किस्म है. भारत के उत्तरी मैदानों में मध्य  दिसम्बर से मध्य फरवरी तक मध्यम आकार के हल्के नारंगी फूल पैदा करती है. इससे ताजे फूलों की उपज 18 से 20 टन प्रति हैक्टर तक आंकी गयी है.

पूसा दीप : फ्रेंच गेंदे की यह अगेती किस्म है, जो कि रोपाई के 85-95 दिनों बाद पुष्पन प्रांरभ कर देती है. उत्तरी मैदानी भागों में इस किस्म में अक्टूबर – नवम्बर के महीनों के दौरान फूल आते हैं. पौधे मध्यम आकार के और फैलावदार होते हैं जिनकी ऊंचाई 55- 65 सें.मी. तथा फैलाव 50-55 सें.मी. होता है. इसमें ठोस तथा गहरे भूरे रंग के मंझोले आकार के फूल लगते हैं. इस किस्म की उपज 18-20 टन प्रति हैक्टर तक आंकी गयी है.























पूसा बहारः अफ्रीकन गेंदे की यह किस्म बुआई के 90 – 100 दिनों में फूल देना प्रारंभ कर देती है. पौधो की ऊंचाई 75-85 सें.मी. तक होती है. फूल पीले रंग के कॉम्पैक्ट, आकर्षक और बड़े आकार के (8-9 से.मी.) होते हैं. इसमें पुष्पन सर्दियों में जनवरी से मार्च के मध्य तक अधिक होता है.

रापेण की कितनी दूरी रहेगी फायदेमन्द

पौध की रोपाई, आमतौर पर बीज बोने के 25 से 30 दिनों बाद, जब पौधो पर 3-4 पत्तियां आने लगे, तो तैयार क्यारियों में करनी चाहिये. तीस दिन से ज्यादा पुरानी पौध की रोपाई करने से पैदावार में कमी आ जाती है. पौध रोपण की दूरी उगायी जाने वाली किस्म, मृदा की भौतिक दशा, रोपण विधि, इत्यादि बातों पर निर्भर करती है. अफ्रीकन गेंदे के पौधो की रोपाई 40 x 40 से.मी. (पंक्ति से पंक्ति व पौधे से पौधे) की दूरी पर करना चाहिए, जबकि फ्रेंच गेंदे की रोपाई 20 x 20 से.मी. की दूरी पर करें. पौधों की रोपाई हमेशा शाम के समय ही करनी चाहिए तथा पौधे के चारो ओर की मिटटी को अच्छी तरह से दबा देना चाहिए.

सारणी 1. गेंदा पौध तैयार करने एवं रोपण का समय

 

क्र. सं. मौसम बुआई का समय      पौध रोपण का समय

1     सर्दी   सितम्बर – अक्टूबर   अक्टूबर-नवम्बर

2     गर्मी   जनवरी – फरवरी     फरवरी – मार्च

3     वर्षा   जून-जुलाई    जुलाई-अगस्त

संतुलित मात्रा में खाद एवं उर्वरक के प्रयोग से पैदावार में फायदा

खाद एवं उर्वरकों के उपयोग का मुख्य उद्देश्य पौधों के समुचित विकास एवं बढ़वार के साथ ही मृदा में अनुकुलन पोषण दशाएं बनाए रखना होता है. उर्वरकों के काम में लेने का उचित समान्य तौर पर मृदा स्वभाव, पोषक तत्व, जलवायु और फसल के स्वभाव पर निर्भर करता है. इनकी मात्रा, मृदा की उर्वरता तथा फसल को दी गयी कार्बनिक खादों की मात्रा पर निर्भर करती है. यदि संतुलित मात्रा में खाद एवं उर्वरक दी जाये तो निश्चित रूप से पौधों की अच्छी बढ़वार और पुष्प उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है. अतः जहां तक हो सके हमेशा मृदा नमूनों की जांच के उपरांत ही खाद एवं उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए. सामान्यतः खेत तैयार करते समय 10 से 15 टन अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद मिट्टी में मिला दें. इसके अलावा 120 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 80 कि.ग्रा. फॉस्फोरस व 60 कि.ग्रा. पोटाश  भी प्रति हैक्टर की दर से डालनी चाहिए. नाइट्रोजन की आधी मात्रा एवं फॉस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय बेसल ड्रेसिंग के रूप में डाल दे तथा शेष बची हुई नाइट्रोजन की आधी मात्रा को दो बराबर भागां में प्रथम रोपाई के एक महीने बाद एवं दूसरी 55-65 दिनों बाद छिड़काव विधि से दें.













सिंचाई का भी रखें विशेष ध्यान

सिंचाई का सही समय कई कारकों जैसे मृदा का प्रकार, मृदा में कार्बनिक पदार्थी की मात्रा, मौसम इत्यादि पर निर्भर करता है. प्रथम सिंचाई पौध रोपण के तुरन्त वश्चात कर दे एवं उसके बाद गर्मियों में 7-10 दिनों के अंतराल पर और सर्दियों में 15-20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए. बरसात के मौसम के मौसम में यदि बारिश नही होती, तो आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए.

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जरूरी है समय पर खरपतवार नियंत्रण

पौध लगाने के कुछ समय पश्चात उनके आसपास विभिन्न प्रकार के खरपतवार भी उग आते हैं, जो कि पौधों के साथ – साथ पोषक तत्वों, स्थान, नमी आदि के लिए प्रतिस्पर्धा करते रहते हैं. इसके साथ ही ये विभिन्न प्रकार के कीटों एवं बीमारियों को भी आश्रय प्रदान करते हैं. अतः जरूरी है जब खरपतवार छोटा रहे उसी समय खेत से बाहर निकाल दें. इसके लिए पहली निराई -गुड़ाई पौध रोपण के 25-30 दिनों बाद एवं दूसरी दसके लगभग एक महीने बाद करें समय पर निराई गुडा़ई करने से मिट्टी भुरभुरी बनी रहती है, जिससे जड़ों का विकास अच्छा होता है.

जरूरी है पौधों का सहारा

अफ्रीकन गेंदें में यह एक महत्वपूर्ण प्रकिया है, जब पौधे को गिरने से बचाने के लिए मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए, जिससे पौधे तेज हवा या वर्षा से नीचे न गिरें. सहारा देने का कार्य बांस या खपच्ची की सहायता से भी किया जा सकता है. समय पर सहारा देने से पौधे साधे खडे़ रहते तथा फूलों की गुणवत्ता भी अच्छी रहती है.

अधिक फूल लेने के लिए जरूरी है पिचिंग

अफ्रीकाकन गेंदा में पिंचिंग (शीर्षनोचन),अग्रस्थ प्रभाव को कम करने के लिये किया जाता है. शीर्ष प्रभुता के कारण पौधे लम्बे एवं पतले हो जाते हैं जिन पर काफी कम संख्या में शाखायें निकलती हैं. इसके परिणामस्वरूप फूलों की संख्या में बहुत कमी देखने को मिलती है. पौधे के फैलाव को बढ़ाने के लिए शीर्षनोचन किया जाना आवश्यक है. इस प्रक्रिया में गेंदे के शीर्ष भाग (2-3 से.मी.) को हाथ से तोड़ दिया जाता है, ताकि पौधे में बगल वाली शाखायें अधिक संख्या में निकलें. इसके परिणास्वरूप कलियां भी अधिक संख्या में बनती है और फूलों की उपज में बढ़ोत्तरी होती है. शीर्षनोचन का उपयुक्त समय पौध रोपाई के 30-35 दिनों बाद आता है, जब पौधो में 1-2 पुष्प कलियां बननी प्रारम्भ हो जाती है. इस प्रक्रिया से पुष्पन प्रारंभ होने का समय भी प्रभावित होता है. फ्रेंच गेंदा में शीर्षनोचन नहीं किया जाता है.  

गेंदे की विशेषताएं

अन्य फसलों की तुलना में गेंदे की कुछ खास विशेषताएं हैं जैसे विभिन्न प्रकार की मृदाओं एवं जलवायु में सफलतापूर्वक उगने, पुष्पन की आर्थिक अवधि, पुष्प जीवनकाल अधिक होने के साथ – साथ इसमें कीट एवं बीमारियों का प्रकोप भी कम होने के कारण यह काफी फायदेमंद फसल हैं. गेंदे को गरीब का पुष्प भी कहा गया है, परन्तु इसके फूल गरीब से लेकर अमीर तक सभी को पसन्द है. गेंदे के फूलों का उपयोग माला बनाने, पार्टी या विवाह के पंडाल को सजाने, धार्मिक स्थलों में पूजा के लिए किया जाता है. आजकल कुछ किस्मों के फूलों का इस्तेमाल कार्तिक पुष्प के रूप में फूलदान सजाने में भी किया जाता है. पौधों की विभिन्न ऊंचाई एवं फूलों के विविध रंगो की छाया के कारण इनका इस्तेमाल गमलों एवं क्यारियों में लगाकर भू-दृश्य की सुन्दरता बढ़ाने में भी किया जाता है. साथ ही गेंदे के फूल तथा पत्तियों का उपयोग विभिन्न दवाइंयो, तेल निष्कर्षण, आहार योग्य रंगो के उत्पादन में भी किया जाता है. नांरगी फूल वाली किस्मों के फूलां की पंखुड़ियों में कैरोटिनॉइडस-पीला वर्णक (ल्यूटिन) अधिकत्ता में पाया जाता है. इसका उपयोग पोल्ट्री उद्योग में मुर्गियों के दाने के रूप में किया जाता है जिससे अंडे की जर्दी योक का रंग पीला हो जाता है. गेंदे का उपयोग उपरोक्त सभी मूल्यसंवर्धन उत्पादो के अलावा अंतरवर्ती फसल के रूप में भी सूत्रकृमियों की रोकथाम हेतु किया जाता है. इसकी जड़ो से अल्फा -टेरथिएनील नामक एक पदार्थ का निर्माण होता है जो मूल ग्रंथ सूत्रकृमियों को अपनी ओर आकर्षित करता है. इसी कारण से यह सब्जियों वाली फसलों के साथ – साथ पॉलीहाउस में भी सूत्रकृमियों की रोकथाम के लिये उगाया जाता है.













लिए मिटटी चढ़ा देनी चाहिए, जिससे पौधे तेज हवा या वर्षा से नीचे न गिरें. सहारा देने का कार्य बांस या खपच्ची की सहायता से भी किया जा सकता है. समय पर सहारा देने से पौधे सीधे खड़े रहते है तथा फूलों की गुणवत्ता भी अच्छी रहती है.

सही तरीके से करें फूलों की पैकिंग

फूलों को तुड़ाई के पश्चात हमेशा ठंडे स्थान पर ही रखें. गेंदे के फूलों को स्थानीय बाजार में भेजने के लिए टाट के बोरो में पैक किया जाता है और दूर के बाजार के लिए बांस की टोकरी का उपयोग किया जाता है.

समय पर करें कीट एवं बीमारियों का नियंत्रण

वैसे तो गेंदे का पौधा बड़ा सहनशील होता है, जिस पर कीट एवं बीमारियों का आक्रमण काफी कम होता है. परन्तु उचित समय पर इनकी सही तरीके से पहचान करके नियंत्रित नही किया जाये तो कई बार नुकसान बहुत ज्यादा हो जाता है. गेंदे में लगने वाले कुछ प्रमुख कीट एवं बीमारियां निम्नालिखित हैं.

आर्द्र गलन : यह रोग राइजोक्टोनिया सोलानी नामक फफूंद से फैलता है एवं इसकी समस्या ज्यादातर पौध तैयार करते समय नर्सरी घर में ही देखने आती है. रोग ग्रसित पौधे का तना गलने लगता है एवं जब पौधो को उखाड़कर देखते है तो उसका जड़ तंत्र भी सड़ा हुआ दिखाई देता है. प्रभावित पौधे जमीन की सतह से सड़कर नीचे गिरने लगते हैं. इसकी रोकथाम के लिए बीजों को बुआई से पूर्व 3 ग्राम कैप्टॉन या 3 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति कि.ग्रा. बीज के हिसाब से उपचारित करें. खड़ी पौध में समस्या आने पर उपरोक्त फफूंदनाशी दवा के 0.2 प्रतिशत के घोल से डैचिंग करें.

पाउडरी मिल्ड्यू : ओडियम स्पीसीज के कारण यह रोग फैलता है. इस फफूंद से प्रभावित पौधों की पत्तियों के ऊपरी तरफ सफेद चूर्ण जैसे चमकते दिखाई देते हैं जिसकी वजह से पुष्प उत्पादन में काफी कमी आ जाती है. इसकी रोकथाम के लिए घुलनशील गंधक (सल्फैक्स) एक लीटर या कैराथेन 40 ई.सी. 150 मि.ली. प्रति हैक्टर की दर से लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर पुनः दोरायें.

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पुष्प कली सड़न रोग : यह रोग अल्टरनेरिया डाइएंथी द्वारा फैलता है. इससे नई कलियां काफी प्रभावित हैं फूलों की पंखड़ियों पर भी काले रगं के धब्बो दिखई देते हैं. जो बाद में पूरे फूल पर फैले जाते हैं. इसकी रोकथाम के लिए रीडोमिल या डाईथेन एम -45 का 2 गाम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 10-12 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए.

पत्ती धब्बा रोगः अल्टरनेरिया टैजैटिका कवक के प्रकोप के कारण पौधों की पत्तियों के ऊपर भूरें रंग के गोल की ध्ब्बे दिखायी देने लगते हैं, जो धीरे -धीरे पत्तियों को खराब कर देते हैं. इसकी रोकथाम के लिए बाविटिटन 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें.

लाल मकडी़ (रेड स्पाइडर माइट) :

यह आठ पैरों वाला कीट बहुत ही छोटा, लगभग बिन्दु के समान , लाल रंग का होता है. यह पत्ती के निचले भाग पर इसका आक्रमण ज्यादा होता है. माइट गेंदे की पत्तियों का रस चूस लेते हैं, जिससे पत्तियां हरे रंग से भूरे रंग में परिवर्तित होने लगती हैं तथा पौधे की बढ़वार बिल्कुल रूक जाती है. इसकी रोकथाम के लिए मैटासिस्टाक्स या रोगर का एक मि. ली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए.

कली छेदक कीट : इस कीट की लट (सूंडी) फूल की कलियों में छोद कर देती हैं. कीट के नियंत्रण के कर देती है. इस कीट के नियंत्रण के लिए मैलाथियान या क्यूनालफॉस या प्रोफेनोफॉस 1 .5-2 मि.ली. का उक लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए. 

मोयला : यह कीट हरे रंग का होता है. ये पत्तियों की निचली सतह से रस चूसकर काफी हानि पहंचाते हैं यह विषाणु रोग भी फैलाने में सहायक होता है. रोकथाम के लिए 300 मि.ली. डाईमेथोएट (रोगोर) 30 ई.सी. या मैटासिस्टॉक्स 25 ई.सी. को प्रति हैक्टर छिड़काव करें. यदि आवश्यकता हो तो अगला छिड़काव 10 दिन के अंतराल पर पुनः दोहरायें.













फूलों की समय पर करेंगे तुड़ाई तभी दे पायेगा कमाई – गेंदे के फूलों की तुड़ाई उस समय ही करें जब वे पूर्ण रूप से विकसित हो चुके हो. फूलों की तुड़ाई सुबह या शाम के समय जब मौसम ठंडा रहता हो, उसी समय करें. तुड़ाई से एक दिन पूर्व खेत में हल्का पानी लगा देना चाहिए, जिससे फूलों में ताजगी बनी रहे तथा उन्हें ज्यादा समय तक रखा जा सकें. फूलों को तोड़ते समय यह ध्यान रखे कि पुष्प के नीचे का लगभग 0.5 से.मी. लम्बा हरा डंठल पुष्प से जुड़ा रहे. फूलों की उपज उगायी जाने वाली किस्म, मिट्टी पौधे तथा पंक्तियों के मध्य की दूरी, खाद एवं उर्वरक के प्रयोग की मात्रा इत्यादि पर निर्भर करती है. सामान्यतः अफ्रीकन गेंदे में 15-20 टन व फ्रेंच गेंदे से 12-15 टन प्रति हैक्टर उपज प्राप्त हो जाती है.

कैसे तैयार करें गेंदे की स्वस्थ पौध

गेंदें के बीज चमकदार और जैट काले रंगे के रंगेहाते हैं, जिन्हों एकेन कहते हैं. पौधे तैयार करने के लिए हमेशा स्वस्थ व पके बीजों का ही चयन करना चाहिए. साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बीज ज्यादा पुरानें न हों, क्योंकि साल भर बाद के अकुंरण प्रतिशत में कमी आने लगती है. गेंदे के एक ग्राम बीज में औसतन 300-350 की संख्या में बीज होते है. गर्मी और वर्षा के मौसम में पौध तैयार करने के लिए 250-300 ग्राम बीज प्रति एकड़ तथा सर्दी के मौसम में 150-200 ग्राम प्रति एकड़ बीजों के बेहतर अंकुरण के लिए, अधिकतम तापमान 18 से 300 सेल्सियस के बीच उपयुक्त रहता है. बुआई से पूर्व बीजों को किसी फफूंदनाशाक दवा जैसे थायरम, कैप्टॅन, बाविस्टिन इत्यादि से उपचारित बीजों की बुआई जमीन की सतह से लगभग 15-25 सें.मी. उंठी हुई ऊंची क्यारियां में ही करें. उठी हुई क्यारियां बनाने से अतिरिक्त जल आसानी से बाहर निकल जाता है,जिससे बीमारीयों का प्रकोप कम होता है. क्यारियों की चौड़ाई 100-120 सें.मी. तथा लम्बाई खेत की स्थिति के अनुसार रखी जा सकती है. क्यारियां तैयार करते समय अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद 5 से 8 कि.ग्रा. प्रति वर्ग मीटर की दर से डालकर अच्छी तरह मिला देनी चाहिए. बीजों की बुआई लाइनों में ही करें एवं दो लाइनों के बीच 6-10 सें.मी़. की जगह छोडें. साथ ही यह ध्यान भी रखें कि बीजों को ज्यादा गहराई पर न डालें. इनकी गहराई 1-2 सें.मी. की हो एवं बीजों को ढ़कने के लिए बालू रेत या कम्पोस्ट खाद का प्रयोग करें. बीजों को चींटी वगैरह से बचाने के लिए ऊनर घास – फसू की पतली परत से ढ़क बुआई के पश्चात झारे की सहायता से क्यारियों की सिंचाई करें एंव आवशकतानुसार समय-समय पर सिचांई करते रहें. गेंदें की पौध मुख्य खेत में लगाने के लिए लगभग 22-25 दिनों में तैयार हो जाती है.

बीजोत्पादन भी है अच्छो मुनाफे वाला सौदा

ऐसे किसान भाई, जो बीज उत्पादन से जुड़े हैं या करना चाहते हैं, उनके लिए भी यह एक लाभदायक फसल है. शुध्द बीज की प्रप्ति के लिए एक किस्म से दूसरी बीज उत्पादन के लिए जाली से ढके पौधे किस्म की दूरी 500 से 1000 मीटर रखें. साथ ही खराब एवं रोगग्रसित पौधों को भी समय – समय पर निकालते रहें जो रूप से परिपक्व होकर तैयार हो गये हों. उस समय पौधों पर पुष्प सूखने लग जाते हैं. तुड़ाई के पश्चात फूलों को छाया में सुखाया जाता है तथा नमी एवं वायुरोधी डिब्बों में भण्डारण किया जाता है.

लेखक :

हेमन्त कुमार (पुष्प एवं भूदृश्य कला विभाग)

डॉ. ओकेश चन्द्राकर (सब्जी विज्ञान विभाग)

लित कुमार वर्मा (एम.एस.र्सी)

पं. किशोरी लाल शुक्ला उद्यानिकी महा. एवं अनुसंधान केन्द्र, राजनांदगांव (छ.ग.)
















English Summary: The complete details of the commercial cultivation of the lime, in many ways can benefit
Published on: 09 October 2018, 06:40 IST